Friday, July 13, 2007

ज़ख्म ...

ज़िंदगी ये बढ़ रही है,
मुश्किलों से लड़ रही है,
मैं भी जिए जा रहा हूँ,
ज़ख्म सहे जा रहा हूँ।

ये ज़ख्म बड़े अजीब हैं,
कहने को तो रकीब हैं,
मगर काँटों भरी राहों में,
ये अपनों से ज़्यादा करीब हैं।

कहते हैं ये ज़ख्म सिल जाते हैं,
समय की अंधी दौड़ में धूमिल जाते हैं,
मगर मेरे ज़ख्म कभी नहीं सिलेंगे,
ये मेरी कब्र पर फूल बनकर खिलेंगे।

The Lone Crusader...

An interesting thing I saw today.
It was worth taking a picture of so, that's what I did.
Whether you find it interesting or no is your perspective.
But, I do.
The whole idea of being "The Lone Crusader" or "The First One" enthralls me. It just goes on to show that you don't need a worldfull of people to achieve your goal. All you need is "YOU".