I wrote this day before.
जिगर के चाक को सीता चल,
अपने आसुओं को तू पीता चल,
ये ज़ख्म तो ज़िंदगी की शान हैं,
जीने की चाह में तू जीता चल।
दर्द ना मिला तुझे तो क्या जिया,
ख़ुशी में न खिल सका तो क्या जिया,
सुख-दुःख तो जीवन के साथी हैं,
इन संग न रह सका तो क्या जीया।
तेरा जीवन तेरी चाह है,
हर दर्द की मरहम तेरी आह है,
अपनी मर्जी का तू मालिक बन,
तेरी मंजिलों को तेरा इंतज़ार है।
:-)
2 comments:
"हर दर्द की मरहम तेरी आह है"
so true, lovely poem...
Waah!
I really loved the Poem!
Keep going!
:-)
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